केरल सरकार द्रोपदी मुर्मू के खिलाफ़ पहुँची सुप्रीम कोर्ट
सरकार राष्ट्रपति के खिलाफ याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। क्या है पूरा मसाला आज हम इस ब्लॉग पोस्ट में इसे विस्तार से जानने की कोशिश करेंगे।
भारत के अंदर जब कोई कानून बनता है। तो उस कानून को बनाने के लिए एक विधिक प्रक्रिया होती है। यदि कोई राज्य सरकार कोई कानून बनाना चाहती है। तो पहले वह विधानसभा में प्रस्ताव लाती है। विधानसभा में बैठे विधायक प्रस्ताव पर चर्चा करते हैं। फिर वोटिंग होती है। अगर वह प्रस्ताव मेजोरिटी वोटों से पास हो जाता है तो फिर उसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है।
यहां पर राज्यपाल को तीन प्रकार की शक्तियां है
पहला वह भी विधेयक पर हस्ताक्षर करके विधेयक को पास कर दे।दूसरा विधेयक में कुछ पॉइंट पर मार्क कर दे और पुनर्विचार के लिए राज्यसभा को भेज दे। अगर राज्यसभा फिर से उसे पास कर देती है तो अब राज्यपाल को उसपर हस्ताक्षर करना ही होगा।
तीसरा यह बहुत इंपॉर्टेंट पॉइंट है कि राज्यपाल ना ही हस्ताक्षर करते हैं और ना ही पुनर्विचार के लिए भेजता है। वह सीधे इसे राष्ट्रपति के पास भेज देता है। अगर उसे कुछ ऐसा आभास होता है की इस विधेयक में कुछ ऐसा है जो सुप्रीम कोर्ट के पावर को कम कर दे या राज्य और केंद्र सरकार के बीच विवाद उत्पन्न कर दे। या फिर विधेयक संविधान के खिलाफ हो। तो ऐसी सिचुएशन में वह इस विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। राष्ट्रपति उस विधेयक को चाहे पास कर दें या फिर उसे अपने पास रख ले।
राष्ट्रपति से नहीं मिली विधायकों पर मंजूरी तो केरल सरकर ने दायर की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
केरल राज्यसभा से पास हुई सात बिल को राष्ट्रपति ने अभी तक रोक कर रखा है। सरकारिया आयोग ने रिकमेंडेशन दिया था कि राष्ट्रपति कोई भी बिल को 6 माह से अधिक ना रोकें। लेकिन यहाँ तो एक दो साल से ऊपर हो चुका है। इसी को लेकर केरल सरकार ने राष्ट्रपति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया है।
यहाँ पर मुख्य विवाद केवल 4 विधेयकों को लेकर है
विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2021;
केरल सहकारी सोसायटी (संशोधन) विधेयक, 2022;
विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022; और
विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2022 शामिल है।
असल में यह जो चारों विधायक हैं। वह राज्यपाल कि शक्तियों को कम करने वाले विधायक हैं। वह इसलिए क्योंकि किसी भी राज्य के स्टेट यूनिवर्सिटी का चांसलर राज्यपाल होता है। वह अपनी जगह एक वॉइस चांसलर को नियुक्त करता है। चांसलर तथा वाइस चांसलर मिलकर यूनिवर्सिटी के फैसले लेते हैं। इस नियुक्ति के पद को लेकर इतना सारा विवाद उठा है। क्योंकि किसी यूनिवर्सिटी में क्या होगा यह तो वॉइस चांसलर तय करेगा और VC क्या करेगा यह राज्यपाल तय करेगा। केरल सरकार का कहना है कि राज्यपाल अपने मर्जी से किसी को भी वाइस चांसलर नहीं बन सकता है। उसे council of minister of state के रिकमेंडेशन पर ही वाइस चांसलर की नियुक्ति करनी चाहिए। हमारे कानून में ऐसी इसको लेकर कोई भी पंक्ति लिखी नहीं गई है। इसलिए राज्यपाल अपनी विवेक के अनुसार किसी को भी वाइस चांसलर बन सकता है। केरल सरकार का कहना है कि राज्यपाल को जनता ने चुनकर नहीं भेजा है। उसे केंद्र सरकार डायरेक्ट नियुक्त करती है। तो राज्यपाल का हक नहीं है कि वह अपने विवेक के अनुसार वाइस चांसलर को नियुक्त करें वाइस चांसलर राज्य सरकार के रिकमेंडेशन पर नियुक्त होना चाहिए।
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अब कोई राज्यपाल अपने पावर को कम होता कैसे देख सकता है। इसीलिए केरल के राज्यपाल आरिफ आरिफ मोहम्मद खान ने इन सभी बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। राष्ट्रपति ने इसे अपने पास रख लिया। इसी को लेकर केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि राष्ट्रपति की ओर से बगैर किसी कारण विधेयकों को मंजूरी न देने को असंवैधानिक घोषित किया जाए।
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