अमित शाह का बयान : जम्मू कश्मीर से हटाई जा सकती है भारतीय सेना।

कश्मीर में लंबे समय से लेकर एक कयास रहे हैं की कश्मीर एक आशांत क्षेत्र है। यहां पर सिर्फ सेना ही नियंत्रण कर सकती है। लेकिन अभी खुशखबरी यह निकल कर सामने आ रही है। की केंद्रीय मंत्री अमित शाह के द्वारा हाल ही में एक टीवी चैनल में दिए गए इंटरव्यू के दौरान बताया कि यहां से भारतीय सेना को जल्द हटाया जा सकता है। और यहां की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपी जा सकती है। सितंबर 2024 के पहले ही यहां पर चुनाव भी कराये जाने की योजना है। ऐसी तमाम बातें कहीं गई और गिनाया गया की किस प्रकार से भारत ने कश्मीर में एक शांति का दौर देखा है। क्या भारतीय सेना कश्मीर से हटा ली जाएगी? अगर हटा ली जाएगी तो उस AFSPA (Armed Forces Special Powers Act) कानून का क्या होगा जिसके माध्यम से भारतीय सेवा जम्मू कश्मीर में तैनात है।

जम्मू कश्मीर की खूबसूरती को नजर 1990 के दशक में लग गई थी। जब आतंकियों ने जम्मू कश्मीर को गोलियों से छल्ली कर दिया था। हजारों की संख्या में लोगों तथा जवानों का मारे जाना सुर्खियों में था। सन 2019 में जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटा दिया गया और जम्मू कश्मीर को तथा लद्दाख को यूनियन टेरिटरी बना दिया गया। 5 अगस्त सन 2019 के बाद 370 हटाने के बाद अब जम्मू कश्मीर में शांति का माहौल देखा जा सकता है। भारत सरकार कंसीडर कर रही है कि अब जम्मू कश्मीर से AFSPA (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम) कानून को हटा दिया जाय। AFSPA वो कानून है जिसके तहत भारतीय सेना बिना किसी वारेंट से किसी भी की तलाशी ले सकती है। पूछताछ कर सकती है। और ज्यादा चहल पहल करने पर उसे गोली भी मार सकती है। अगर AFSPA कानून को जम्मू कश्मीर से हटाया जाता है। तो यह 1990 के दशक के बाद यह जम्मू कश्मीर के लिए बहुत ही सुखद खबर है। 

AFSPA क्या है?

AFSPA वो कानून है जिसके तहत भारतीय सेना बिना किसी वारेंट के किसी भी की तलाशी ले सकती है। पूछताछ कर सकती है और ज्यादा चहल पहल करने पर उसे गोली भी मार सकती है। AFSPA यानी Armed Forces Special Powers Act.। 11 सितंबर 1958 को संसद की मंजूरी के बाद AFSPA बना। सबसे पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में AFSPA लगाया गया। फिलहाल जम्मू- कश्मीर, नगालैंड, असम, मणिपुर और लागू अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में AFSPA लागू।

क्या जम्मू कश्मीर में AFSPA का विरोध किया जा रहा था?

जम्मू कश्मीर में AFSPA को दशकों से विरोध किया जा रहा है। दरअसल, राजनीतिक दलों और आम लोगों की कई सालों से मांग थी कि जम्मू कश्मीर में सेना को जो विशेष अधिकार हैं, उसे हटाना चाहिए। कई बार देखा गया कि इसका दुरुपयोग भी हुआ है। फर्जी एनकाउंटर हुए। हाल ही में राजौरी में कस्टडी में चार युवाओं की मौत ने माहौल गरमा दिया था।

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जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का मूवमेंट कितना कम हुआ है?

केंद्र सरकार मान रही है कि जम्मू कश्मीर में आतंकियों का मूवमेंट कम हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि आतंकवाद में 80 फीसदी कमी आई है। पत्थरबाजी की घटनाएं पूरी तरह खत्म हुई है। बंद, प्रदर्शन और हड़तालें गाइड हो गई है। गृह मंत्री ने कहा, 2010 में पथराव की 2564 घटनाएं हुई थीं जो अब शून्य हैं। 2004 से 2014 तक 7217 आतंकी घटनाएं हुई। 2014 से 2023 तक यह घटकर 2227 हो गई हैं और यह करीब 70 प्रतिशत की कमी है। 2004 से 2014 तक मौतों की कुल संख्या 2829 थी और 2014-23 के दौरान यह घटकर 915 हो गई है, जो 68 प्रतिशत की कमी है। नागरिकों की मृत्यु 1770 थी और घटकर 341 हो गई है, जो 81 प्रतिशत की गिरावट है। सुरक्षा चलों की मौतें 1060 से घटकर 574 हो गई, जो 46 प्रतिशत की कमी है।

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