20 जुलाई 1969 अपोलो मिशन का लूनर मॉड्यूल चांद पर लैंडिंग करता है। इसमें बैठे हैं नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन।
लैंडिंग के बाद नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरने के लिए दरवाजा खोलने की कोशिश करते हैं। यह दरवाजा खोलना इतना आसान नहीं था। क्योंकि प्रेशर बहुत ज्यादा था। थोड़े स्ट्रगल के बाद दरवाजा खोलने में सक्सेसफुल होते हैं। फिर अपने भारी से स्पेस सूट में ये बाहर चांद पर उतरने कि कोशिश करते।
लूनर मॉड्यूल से निकले की इतनी ज्यादा जगह नही थी, तो गलती से लूनर मॉड्यूल से टकराकर अचानक एक टुकड़ा टूट जाता है। इन दोनो को इसके बारे में पता नही चलता क्योंकि वहां कोई हवा नही है। इसलिए आवाज ट्रेवल नही कर सकती है। कोई आवाज सुनाई नही देती। लेकिन ये जो टुकड़ा टूटा था वो बहुत ही जरूरी चीज था। ये एक स्विच था जिसके बिना लूनर मॉड्यूल वापस से टेक ऑफ नही कर सकता था। अर्थात इसके बिना वो धरती पे वापस नही जा सकते थें। इस बात से बेखबर नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरते है और दुनियां के पहले इंसान बन जाते है चांद पर उतरने वाले।
लेकिन क्या सही में ऐसा हुआ था.?
कई लोग आज भी यह मानने से इंकार देते है की इंसान चांद तक गए थें। कई लोग थ्यूरि बनाते है। और कहते है कि यह बस एक दिखावा था अमेरिका की तरफ से। इन्होंने धरती पर ही इस नाटक को फिल्म किया और दुनियां को जो जाकर झूठ बोला।
नहीं तो ये झंडा क्यों लहरा रहा है। चांद पर जबकि चांद पर तो हवा ही नहीं है। और भी ऐसी कई बाते थी जिसको लेकर लोग तरह तरह की बाते बना रहे थें। क्या है इसकी पूरी सच्चाई आए जानने की कोशिश करते है।
क्या थी अपोलो 11 मिशन को प्लान करने की वजह।
इस अपोलो 11 मिशन को प्लान करने की सबसे बड़ी वजह थी कोल्ड वॉर जो अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में चल रही थी। दोनों देशों के बीच स्पेस में जाने के लिए एक रेस चल रही थी। सन 1957 में सोवियत संघ दुनिया का पहला देश बन जाता है, आर्टिफिशियल सैटेलाइट लॉन्च करने वाला। जिसका नाम था " स्पूतनिक " यह पहला ऐसा मानव द्वारा बनाया गया सेटेलाइट था। जिसे स्पेस में भेजा गया था।
अमेरिका सरकार शौक हो जाती है इसे देखकर कि सोवियत यूनियन अमेरिका से आगे कैसे निकल गया। लेकिन 3 साल बाद सन 1961 में अमेरिका को एक और झटका लगता है। सोवियत यूनियन की तरफ से मेजर यूरी गागरिन स्पेस में जाने वाले पहले व्यक्ति बन जाते हैं।
इसके बाद अमेरिका के प्रेसिडेंट जान एफ कैनेडी अपने भाषण में वादा करते हैं दुनिया के सामने कि ये दशक खत्म होने तक अमेरिका इंसानो को चांद पर भेज देगा इतना ही नहीं बल्कि उसे सेफ्ली धरती पर वापस भी लाया जाएगा।
सन 1961 में उस समय यह एक बहुत संभव वाली बात थी। क्योंकि उस समय ना तो स्मार्टफोन था। न ही इंटरनेट था। ना ही जीपीएस ट्रैकिंग की कोई सुविधा थी। इसके लिए यह अगले 5 सालों में 7 से 9 बिलियन फंडिंग देते हैं, अमेरिका की स्पेस प्रोग्राम में। 1967 में अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा पहला मैंड टेस्ट की प्लानिंग करती है। ऐसा टेस्ट जिसमें एस्ट्रोनॉट एक्चुअली में स्पेसक्राफ्ट में बैठकर ऊपर तक जाएंगे। इस मिशन को नाम दिया जाता है APOLLO 1 मिशन। लेकिन धरती पर ही हो रहे टेस्ट के दौरान इनके कैबिन में आग लग जाती है। और जो तीन एस्ट्रोनाट तैयारी कर रहे थे। चांद पर जाने के लिए उनकी मौत हो जाती है। इस दर्दनाक हादसे के बाद भी अमेरिका हार नहीं मानता है। वो अपना टेस्ट जारी रखता है। Oct 1968 में APOLLO 7 मिशन भेजा जाता है, स्पेस में जो की सफल रहता है। सब कुछ टेस्टिंग करने के बाद फाइनली जाकर 16 जुलाई 1969 को वो दिन आ जाता है। जब APOLLO 11 मिशन लांच किया जाता है।
इस मिशन में तीन एस्ट्रोनॉट थें। पहला आर्मस्ट्रांग जो मिशन को लीड कर रहे थे। अन्य दो माइकल कोलिंस तथा बज़ एल्ड्रिन ये तीन नाम इतिहास के पन्नों में रचे जाते हैं। इस पूरे स्पेसक्राफ्ट को लांच करने के लिए SATURN-V-5 रॉकेट का प्रयोग किया गया था।
आखिर क्या कारण है की माइकल कोलिंस का नाम हर कोई इतना नहीं जनता है.?
दरअसल स्पेसक्राफ्ट के दो हिस्से थे एक " कमांड मॉड्यूल " जिसका निक नाम था " कोलंबिया " दूसरा " लूनर मॉड्यूल " जिसका निक नाम था " ईगल "। चांद पर सिर्फ लूनर मॉड्यूल को उतरना था। जिसमे नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन थें। कमांड मॉड्यूल में माइकल कोलिंस बैठे थे जिसका काम था चांद की कक्षा मे चक्कर लगाते रहना ताकि बाद में लूनर मॉड्यूल, आकर कमांड मॉड्यूल से वापस जुड़कर धरती पर वापस आ सके।
वास्ताव में माइकल कोलिंस चांद पर उतरे ही नहीं। शायद यही कारण है की माइकल कोलिंस का नाम हर कोई नहीं जानता है। लेकिन इस मिशन में ये बराबर के हकदार थे क्योंकि इनके बिना स्पेसक्राफ्ट को धरती पर वापस नही लाया जा सकता था
लूनर मॉड्यूल की सफल लैंडिन और पृथ्वी पर वापसी।
लुनर मॉड्यूल की सफल लैंडिग के बाद नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरते है। और धरती पर एक रेडियो मैसेज भेजते है " Houston uh.. Tranquility base here... The Eagle has landed " इस मोमेंट को 650 मिलियन लोग लाइव देख रहे थे टेलीविजन पर। इसके पीछे Buz Aldrin भी चांद पर अपना कदम रखते है। और ये करीब अगले ढाई घंटे तक चांद पर मिट्टी के सैंपल इकट्ठा करते है, फोटो खींचते है। कई वैज्ञानिक उपकरण भी सेटअप करते है। टोटल ये 23 किलो पत्थर और मिट्टी का सैंपल कलेक्ट करते है और चांद पर एक अमेरिकन झंडा छोड़ देते है।
लूनर मॉड्यूल को करीब 21 घंटे तक चांद पर रहना था उसके बाद वापस जाकर कमांड मॉड्यूल से जुड़कर धरती पर वापस आना था। लेकिन ऊपर जाने के लिए ऊर्जा की जरूरत है। जिसके लिए इंजन चाहिए। लेकिन दोनो एस्ट्रोनॉट इस बात से अनजान थे की बाहर निकलते वक्त इंजन का स्विच टूट गया था। वो इस प्रोब्लम के बारे में मिशन कंट्रोल को बताते है और इसका सॉल्यूशन ढूंढते हैं। इस प्रोब्लम का एक बड़ा ही रोचक सॉल्यूशन निकलकर सामने आता है। Buzz Aldrin अपने Ballpoint Pen से स्विच को दुबारा जोड़ देते है।
फाइनली लूनर मॉड्यूल, कमांड मॉड्यूल से री-अटैच हो जाता है। और वो स्पेस क्राफ्ट को धरती के तरफ मोड़ते है। इस पूरे मिशन में एस्ट्रोनॉट के मरने का इतना ज्यादा चांस था की US प्रेसिडेंट रिचर्ड निक्सन ने अपनी एक ऑल्टरनेट स्पीच तैयार कर रखी थी। इन case ये एस्ट्रोनॉट मारे जाते। लेकिन सेफली ऐसा होता नहीं है। एस्ट्रोनॉट सफलतापूर्वक धरती पर वापस पहुंचने मे कामयाब हो जाते हैं।
अब तक कितने लोग चांद की धरती पर कदम रख चुके है
अब तक 12 एस्ट्रोनॉट चांद की धरती पर कदम रख चुके है। Dec 1972 में नासा के द्वारा आखिरी मिशन Apollo 17 भेजा गया। तब से लेकर अब तक इन 50 सालों मे कोई भी इंसान चांद पर नही गया है।
नासा का आर्टेमिश मिशन
अब फिर से नासा ने प्लान बनाया है मानव को चांद पर भेजने का इसके " आर्टेमिश मिशन " के द्वारा। नासा का प्लान है 2025-26 तक वो पहली औरत ( क्रिस्टीना कोच) को चांद पर भजेंगे।
Nice post
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